कहीं आप महापाप के भागी तो नहीं

कहीं आप महापाप के भागी तो नहीं?

बेटियाँ, Daughter

……. कहते है बेटियाँ ईश्वर का बख़्शा हुआ नायब तोहफा है।  मगर चाहिए तो सबको बेटा ही। बेटियों को तो पैदा ही नहीं होने दिया जाता या फिर बेटो की चाह में अनगिनत को पैदा कर दिया जाता है।   दोस्तों कहीं आप महापाप के भागी तो नहीं? आइये आगे पढ़ते है और पता लगते है।

बेटियों का किरदार –

ईश्वर ने इस किरदार को बहोत ही अलग तरह का रोल अदा किया है। अस्थिर किरदार को स्थिर तरीके से बखूबी निभाती बेटियाँ ज़माने के साथ चली जा रही है।  ज़माने का दस्तूर है कि शादी कर के बेटियाँ अपने ससुराल जाएँगी।  अपना सब छोड़ वो एक नए घर में, नए माहौल में आ जाती है । जहाँ उन्हें ये पता भी नहीं पता कि जिन लोगो के बीच वो जा रही है वो आखिर है कैसे? बेटी से बहु के किरदार में तब्दील हुई वो लड़की आज भी अपनी पहचान ढून्ढ रही है।

क्या बेटियाँ पराया धन होती है?

बचपन से ही उन्हें कहना शुरू कर दिया जाता है कि वो पराया धन है।  ससुराल जाने पर कहा जाता है कि वो पराये घर से आयी है।  उन्हें आज तक ये समझ ही नहीं आया कि उनका अपना घर कौन सा है।  खैर कोई बात नहीं। यह तो संसार की रीत है, ऐसा समझकर वो इस रीत को सदियों से निभाती आ रही है।  यहाँ तक कि अपने घर जाने के लिए भी उन्हें पूछ कर जाना पड़ता है। और कहीं न कहीं अपने से परायेपन के घेरे में आ खड़ी हो उसे अपने ही घर में सुख की नींद लेना मुश्किल सा लगने लगता है।

हसंती , खिलखिलाती  हुई बेटियां, ये कभी जाहिर ही नहीं होने देती कि वो कैसा महसूस कर रही है।  मगर जैसा कि आपको बताया कि ईश्वर ने इस किरदार को बहोत ही अलग तरह का रोल अदा किया है। और वो अपनी भावनाओ को मन में दबा , अपना किरदार निभाए जा रही है।

बेटियों की पहचान –

शादी से पहले वो अपने माँ बाप की पहचान होती है।   और शादी के बाद वो अपने ससुराल में अपने पति की पहचान पाती है। उनकी खुद की पहचान कहाँ है?  यदि उन्हें यह पहले ही पता होता कि उनकी अपनी कोई पहचान या घर नहीं है, तो शायद वो अपनी पहचान और अपना घर बनाने को अपना प्रथम दायित्व समझती।  जहाँ वो अपनी पहचान को नाम दे पाती और आत्मविश्वास से जी पाती ।  सिर्फ पढ़ लिख लेना और नौकरी पा लेने मात्र से पहचान नहीं बनती। वह बनती है  आत्म निर्भरता से। स्वयं की आत्मिक संतुष्टि से।

कहीं आप महापाप के भागी तो नहीं?

 

तो क्या आप अपनी बेटी को आत्मनिर्भर बना रहें है? क्या आप आत्मिक सुकून को संजोने में उसके मददगार बन रहे है ?

 

यदि हां। तो आप वाकई पुण्य का काम कर रहे है। और कहीं न कहीं आप ईश्वर के नायब तोहफे का सम्मान कर रहे हैं।
अगर आप चाहते है कि आपकी बेटी सम्मान के साथ जी सके और ख़ुश रहे तो ये चीजे जरूर करे  ।

 

१ – अपनी बेटी को शिक्षा से दूर न रखे –

जी हां दोस्तों, अपनी बेटी को पढ़ाये लिखाये जरूर। क्यूंकि यदि एक बेटी, एक नारी  शिक्षित होती है तो समझ लीजिये एक पीढ़ी शिक्षित हो रही है। साथ ही वह आत्म विश्वास  व सम्मान से जीना सीख जाती है।

२-अपनी बेटी को अच्छा स्वास्थ्य उपहार में दे –

बेटी का स्वस्थ होना अति आवश्यक है।  क्यूंकि वह माता के रूप में नए जीवन की रचना करती है।  अपने शरीर का अंश देती है। इसलिए उसका स्वस्थ होना जरुरी है।

३- बेटियों  को परायेपन का अहसास न कराये –

बेटियों को अपना घर छोड़कर ससुराल जाना होता है।  और यही तो रीत है।  तो जब तक वह आपके पास है उसे अपनापन दे।

४- बेटियों को प्यार से सींचकर बड़ा करे –

बेटियां आपसे प्यार चाहती है। आपकी धन दौलत नहीं।  बेटियों को प्यार दे, वो उस प्यार को कई गुना बढाकर आपको देंगी ।

५- बेटी daughter /कन्या /भूण हत्या को बढ़ावा न दे – कहीं आप महापाप के भागी तो नहीं?

ऐसे लोग जो, बेटी जानकर उसे गर्भ में ही ख़त्म कर देते है या कुछ तो गंगा जी में ही बहा देते है  । और ऐसे पाप के भागी बन जाते है जो उन्हें अपने कर्मो में भोगना ही पडता है।  क्यूंकि कर्म karma तो हो ही गया और karma फल भी अवश्य मिलेगा ही।  यह निश्चित है।  अतः  कन्या भूण हत्या / भूण हत्या को बढ़ावा न दे । भूलकर भी ऐसा न करे।  बेटे और बेटी में अन्तर न करें।

६-  नसीब वालो की पहली संतान बेटी होती है-

कहते है , नसीब वालो की पहली संतान बेटी होती है।  और नसीब को बेहतर बनाने और बरक़रार  रखने के लिए बेटी का प्रसन्न चित होना घर  को खुशियों और सुख समृद्धि से भर  देता है।

धन्य  है ऐसे माँ – बाप जो बेटी के रूप में दिए गए उपहार को अपनाकर और कन्यादान के महापुण्य के भागी बनते है।  और कुछ पुण्य आत्माये तो ऐसी भी है जो कन्या को गोद लेकर उसका लालन – पालन कर  कन्यादान के महापुण्य के भागी बनते है। ऐसे माता-पिता को मेरा सत – सत नमन।

 

  यूँ लिखते – लिखते जज्बातो में मैं आपसे बस यही  कहना चाहती हूँ कि –

 

फूलों सी कोमल हृदय वाली होती हैं बेटियाँ।

माँ बाप की एक आह पर ही रोती हैं बेटियाँ।।

भाई के प्रेम में खुद को भुला देती हैं अक्सर।

फिर भी आज गर्भ में जान खोती हैं बेटियाँ।।

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